Friday, July 11, 2008

जीवन से हम क्या चाहते हैं

क्या पाकर हम संतुष्ट होंगे ? इस प्रश्न के उत्तर को खोजने का तरीका हर किसी का अलग अलग हो सकता है । बचपन से हम जिस माहोल में रहते हैं , उसी के अनुसार जीवन में हमारी संतुष्टि के स्तर होते हैं । 'जब आवे संतोष धन सब धन धूरी समान' । किंतु ये संतोष धन पाने लालसा होते हुए भी हम जीवन में निरंतर आगे बढ़ना चाहते हैं। कितना संतोष ही और कितनी आगे बढ़ने की लालसा हो , दोनों में क्या संतुलन हो जो यह समझ जाए वही स्वस्थ और आनंदित रह सकता है । इस संतुलन के आभाव में ही हमारी मानसिक, शारीरिक,सामाजिक व अन्य तरह की समस्याओं का जन्म होता है । जब हम जरुरत से ज्यादा संतुष्ट ही जाते हैं तो निठल्ले हो कर बैठ जाते हैं और अपने जीवन के मूल्यवान पलों को नष्ट करते हैं । और जब हम लालसा में अंधे हो जाते हैं तो जो हमारे पास है उसे न भोग कर जो नहीं है उसी के पीछे भागते रहते हैं । इसलिए जो है दोस्तों उसका आनंद उठा लो कहीं वह भी हाथ से निकल न जाए । आज के उत्तराधुनिक जीवन में देखने बोगने को समझने को इतना कुछ है , सारा जीवन बस दिखने मात्र में ही निकल सकता है ।